Chalte Chalte
चलते चलते चलते चलते रूकते रूकते आज भी फिर हम चलते हैं। चलते चलते रूकते रूकते आज भी फिर हम चलते हैं। फिर भी दुनिया हमें ये कहती हम ईसके लिये कुछ नहीं करते हैं , चलते चलते रूकते रूकते आज भी फिर हम चलते हैं। सपना है हमारा ऊँचा ,है पर्वत से और भी ऊँचा , फिर भी आगे हम बढ़ते हैं , हमेशा सपनो से लड़ते हैं। चलते चलते रूकते रूकते आज भी फिर हम चलते हैं। एक दिन ऐसा भी आएगा ,हमारा सपना अपना होगा , ऊस दिनकी इन्तेजार में हमेशा, हम कुछ कोशिश करते रहते हैं। चलते चलते रूकते रूकते आज भी फिर हम चलते हैं। चलते चलते रूकते रूकते आज भी फिर हम चलते हैं। ....... मोहम्मद वसीम अख़्तर